सैटेलाइट को सूर्य-पृथ्वी सिस्टम के लैग्रेंज पॉइंट - L1 के आसपास एक हैलो ऑर्बिट में स्थापित किया जाना है. हैलो ऑर्बिट 3-डायमेंशनल होता है जिसमें L1 एक लैंग्रेज पॉइंट कहलाता है. लैंग्रेज पॉइंट अंतरिक्ष में बस एक पॉइंट है. इस तरह के पांच पॉइंट्स होते हैं. ये लैंग्रेज पॉइंट सूर्य से 1.5 मिलियन किलोमीटर दूर है. खास बात ये है कि L1 पॉइंट पर सूर्य ग्रहण का असर नहीं दिखता.
L1 पॉइंट से सूर्य को लगातार देखा जा सकेगा. इससे सोलर गतिविधियों की आसानी से स्टडी की जा सकेगी और वास्तविक समय में अंतरिक्ष के मौसम के बारे में पता लगाया जा सकेगा. इनके अलावा सूर्य के आसपास किसी भी बदलाव का अंतरिक्ष के मौसम पर क्या प्रभाव पड़ता है, इसपर नजर रखा जा सकेगा. आदित्याL1 सैटेलाइट के साथ इसरो सात पेलोड्स भेजने वाला है.
इलेक्ट्रोमैग्नेटिक और डिटेक्टर की मदद से फोटोस्फेयर, क्रोमोस्फेयर और सूर्य की सबसे बाहरी परत की स्टडी की जाएगी. एक खास पॉइंट से तीन पेलोड्स सिर्फ सूर्य पर नजर रखेंगे. इनके अलावा तीन पेलोड्स का काम सूर्य के आसपास मौजूद पार्टिकल्स यानी कणों और क्षेत्रों की स्टडी करना होगा.
चंद्रयान-3 23 अगस्त को लैंडिंग के लिए तैयार
चंद्रयान-3 मिशन 23 अगस्त को चांद के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग के लिए तैयार है. यान अभी 150 x 177 किलोमीटर पर है. आज ही इसरो ने यान के ऑर्बिट को और कम किया है, जिससे यह चांद के और करीब पहुंचेगा. अब यह चांद के गोलाकार चक्कार लगाएगा. अगली बार 16 अगस्त को फिर से ऑर्बिट बदला जाना है. चंद्रयान अपने लैंडिंग स्पेस को चिन्हित करेगा और सॉफ्ट लैंडिंग की प्रक्रिया पूरी करेगा. खास बात ये है कि अगर इसरो इसमें कामयाब होता है तो भारत चांद के साउथ पोल पर पहुंचने वाला पहला देश बन जाएगा.
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