1600 साल पुराना नालंदा यूनीवर्सिटी को PM मोदी ने किया जीवंत, जानिए खासियतें

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1600 साल पुराना नालंदा यूनीवर्सिटी को PM मोदी ने किया जीवंत, जानिए खासियतें

नेशनल डेस्क: 1600 साल पुराना नालंदा विश्वविद्यालय, बिहार में स्थित, प्राचीन भारत का गौरव है। यह विश्वविद्यालय शिक्षा, संस्कृति, और ज्ञान के प्रसार का केंद्र था, जहाँ दुनिया भर के छात्र और विद्वान आते थे।

पांचवीं सदी में बने प्राचीन विश्वविद्यालय में करीब 10 हजार छात्र पढ़ते थे, जिनके लिए 1500 अध्यापक हुआ करते थे। यह विश्वविद्यालय भारत देश का गर्व है, ऐसी धरोहर है, जो हमें ज्ञान के महत्व की याद दिलाती है। बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार यानी के आज बिहार के राजगीर में ऐतिहासिक नालंदा यूनिवर्सिटी के नए कैंपस का उद्घाटन दिया है। ऐसे में भारत देश और दुनिया के लिए धरोहर नालंदा यूनिवर्सिटी का आज पुर्नजन्म हुआ है।

साल 2016 में नालंदा के खंडहरों को संयुक्त राष्ट्र द्वारा विरासत स्थल घोषित किया गया था। 2017 में विश्वविद्यालय का निर्माण कार्य शुरू किया। पुरानी विरासत को संमभालते हुए विश्वविद्यालय का नया कैंपस नालंदा के प्राचीन खंडहरों के पास बनाया गया है। इस नए कैंपस की स्थापना नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 के माध्यम से की गई है।

इस अधिनियम में स्थापना के लिए 2007 में फिलीपींस में आयोजित दूसरे पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में लिए गए निर्णय को लागू करने का प्रावधान किया गया था। 12वीं शताब्दी का इतिहास जब भी दुनिया की टॉप यूनिवर्सिटी की बात होती है तो दिमाग में ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज के नाम आते हैं। लेकिन, नालंदा यूनिवर्सिटी का इतिहास काफी पुराना है। पटना से 90 किलोमीटर और बिहार शरीफ से करीब 12 किलोमीटर दूर दक्षिण में आज भी इस विश्व प्रसिद्ध प्राचीन बौद्ध विश्वविद्यालय के खंडहर स्थित हैं।

लगभग 1600 साल पहले नालंदा यूनिवर्सिटी की स्थापना 5वीं सदी में हुई थी। इसकी स्थापना 450 ई. में गुप्त सम्राट कुमार गुप्त प्रथम ने की थी। बाद में इसे हर्षवर्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला।

जब देश में नालंदा यूनिवर्सिटी बनाई गई तो दुनियाभर के छात्रों के लिए यह आर्कषण का केंद्र था। विशेषज्ञों के मुताबिक 12वीं शताब्दी में आक्रमणकारियों ने इस विश्वविद्यालयों को नष्ट कर दिया था। इससे पहले तकरीबन 800 सालों तक इन प्राचीन विद्यालय ने ना जाने कितने छात्रों को शिक्षा दी है। दुनियाभर के छात्र यहां शिक्षा लेने आया करते थे।

इसलिए इसमें 300 से ज्यादा कमरे थे, सात बड़े-बड़े हॉल थे और इसकी लाइब्रेरी नौ मंजिला हुआ करती थी, जिसका नाम धर्मगूंज था। हालांकि तुर्की के मुस्लिम शासक बख्तियार खिलजी ने नालंदा यूनिवर्सिटी को आग लगवा दी थी। लाइब्रेरी की बात करें तो वह इती बड़ी थी की उसमें लगभग 90 लाख से अधिक किताबें मौजूद थीं, जिस कारण आग पूरे 3 महीने तक धधकती रही थी। 19वीं सदी में मिला था इसका क्लू वहीं मॉडर्न वर्ल्ड को इसके बारे में 19वीं शताब्दी के दौरान पता चला था।

कई सदी तक ये विश्वविद्यालय जमीन में दबा हुआ था। 1812 में बिहार में लोकल लोगों को बौद्धिक मूर्तियां मिली थीं, जिसके बाद कई विदेशी इतिहासकारों ने इस पर अध्ययन किया। इसके बाद इसके बारे में पता चला। नए कैंपस में 40 क्लासरूम, दो ऑडिटोरयम नालंदा यूनिवर्सिटी के नए कैंपस के बारे में जाने तो इसमें दो अकेडमिक ब्लॉक हैं। इस कैंपस में 40 क्लासरूम हैं और साथ ही 1900 बच्चों के बैठने की व्यवस्था भी है।
इसके अलावा 300 सीटों वाले दो 2000 लोगों के बैठने की क्षमता वाले ऑडिटोरियम, इंटरनेशनल सेंटर और एम्फीथिएटर है और फैकल्टी क्लब और स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स भी शामिल है। इस यूनिवर्सिटी का कैंपस 'NET ZERO' कैंपस हैं, इसका मतलब है कि यहां पर्यावरण अनुकूल के एक्टिविटी और शिक्षा होती है। इतना ही नहीं पानी को बचाने के लिए रि-साइकल प्लांट भी लगाया गया है। क्या कुछ पढ़ाया जाता था? ज्ञान के भंडार माने जाने वाले इस विश्वविद्यालय में धार्मिक ग्रंथों के अलावा लिट्रेचर, थियोलॉजी,लॉजिक, मेडिसिन, फिलोसॉफी, एस्ट्रोनॉमी जैसे कई सब्जेक्ट पढ़ाया जाता था।

700 साल तक ये यूनिवर्सिटी लोगों को ज्ञान के मार्ग ले जाती रही। कैसे होती थी एडमिशन पहले की बात करें तो इस यूनिवर्सिटी में एडमिशन के लिए कठिन प्रेवश परीक्षा हुआ करती थी, जिससे पास करने के बाद ही छात्र यहां पढ़ सकते थे। उस समय का जिक्र करें तो इस विश्वविद्यालय ने उस समय 10 हजार से 20 हजार छात्रों को शिक्षित किया है। इस विश्वविद्यालय में छात्रों को निशुल्क शिक्षा दी जाती थी।

इतना ही नहीं इस विश्वविद्यालय को अपने समय में हिंदू और बौद्ध धर्म की पढ़ाई के लिए जाना जाता था। पुराने समय में साहित्य, ज्योतिष, मनोविज्ञान, कानून, खगोलशास्त्र, विज्ञान, युद्धनीति, इतिहास, गणित, वास्तुकला, भाषाविज्ञान, अर्थशास्त्र, चिकित्सा आदि विषय पढ़ाए जाते थे। नए कैंपस में विश्वविद्यालय में बौद्ध अध्ययन, फिलॉसफी, तुलनात्मक धर्म की पढ़ाई, इतिहास, पारिस्थितिकी और पर्यावरण स्टडीज और मैनेजमेंट की पढ़ाई के लिए अलग-अलग स्कूल बनाए गए हैं। ह्वेनसांग और नालंदा का क्या है रिशता नालंदा विश्वविद्यालय की खासियत की बात करें तो उस समय पर वहां महान शिक्षकों ने पढ़ाई करवाई थी।

इन महान शिक्षकों में नागार्जुन, बुद्धपालिता, शांतरक्षिता और आर्यदेव का नाम शामिल हैं। वहीं अगर यहां पढ़ने वालों की बात करें तो यहां कई देशों से लोग पढ़ने आते थे। चीन के प्रसिद्ध यात्री और विद्वान ह्वेनसांग, फाह्यान और इत्सिंग भी यहां से पढ़े हैं। ह्वेनसांग, नालंदा के आचार्य शीलभद्र के शिष्य थे।

ह्वेन सांग ने 6 साल तक नालंदा विश्व विद्यालय में रहकर कानून की पढ़ाई की थी। छात्रों में अधिकांश एशियाई देशों चीन, कोरिया और जापान से आने वाले बौद्ध भिक्षु होते थे। इतिहासकारों के मुताबिक, चीनी भिक्षु ह्वेनसांग ने भी सातवीं सदी में नालंदा में शिक्षा ग्रहण की थी। उन्होंने अपनी किताबों में नालंदा विश्वविद्यालय की भव्यता का जिक्र किया है। यह बौद्धों के दो सबसे अहम केंद्रों में से एक था।

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