खगोल वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के सबसे निकट ब्लैक होल की खोज की है। ये सूर्य से 10 गुना अधिक विशाल है। हमारी आकशगंगा में लगभग 10 मिलियन से एक बिलियन ब्लैक होल मौजूद हैं। इनका निर्माण कई तारों के टूटने से होता है।

ब्लैक होल अंतरिक्ष में एक ऐसी जगह है जहां गुरुत्वाकर्षण इतना अधिक खींचता है कि रोशनी भी बाहर नहीं निकल पाता है। ब्लैक होल को देखा नहीं जा सकता क्योंकि वह अदृश्य होते हैं। इन्हें विशेष उपकरणों जैसे स्पेस टेलीस्कोप के द्वारा पता लगाया जा सकता है। ब्लैक होल, एक बड़े तारे के अवशेषों से बनते हैं लेकिन इनके बनते ही ये सुपरनोवा विस्फोट में नष्ट हो जाते हैं। पहला ब्लैक होल कब दिखा था?
नासा की वेबसाइट के मुताबिक, दुनिया का सबसे पहला ब्लैक होल 1964 में सिग्नस, स्वान के नक्षत्र में आकाशगंगा के भीतर पाया गया था जिसका नाम सिग्नस X-1 था। बताते चले की हमारी आकशगंगा में लगभग 10 मिलियन से एक बिलियन ब्लैक होल मौजूद हैं। इनका निर्माण कई तारों के टूटने से होता है। ब्लैक होल कितने बड़े हैं?
ब्लैक होल बड़े या छोटे भी हो सकते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि सबसे छोटे ब्लैक होल परमाणु जितने छोटे होते हैं। ये ब्लैक होल बहुत छोटे होते हैं लेकिन इनका द्रव्यमान विशाल पर्वत जितना बराबर होता है। वहीं तारकीय ब्लैक होल का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से 20 गुना अधिक हो सकता है। बता दें कि पृथ्वी की आकाशगंगा में कई तारकीय द्रव्यमान वाले ब्लैक होल हो सकते हैं। पृथ्वी की आकाशगंगा को मिल्की वे कहते हैं। सबसे बड़े ब्लैक होल को सुपरमैसिव कहा जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, इसका द्रव्यमान लगभग 4 मिलियन सूर्य के बराबर है।
नासा के मुताबिक, ब्लैक होल पृथ्वी में नहीं गिरेगी क्योंकि कोई भी ब्लैक होल सौर मंडल के इतना करीब नहीं है। यहां तक कि अगर एक ब्लैक होल सूर्य का स्थान ले लेता है, तब भी पृथ्वी नहीं गिरेगी। ब्लैक होल में सूर्य के समान गुरुत्वाकर्षण होगा। पृथ्वी और अन्य ग्रह ब्लैक होल की परिक्रमा करेंगे। वहीं सूरज कभी ब्लैक होल में नहीं बदलेगा। ब्लैक होल बनाने के लिए सूर्य इतना बड़ा तारा नहीं है।