जगन्नाथ रथयात्रा में श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़, राष्ट्रपति मुर्मू भी हुईं शामिल, जानें इतिहास और महत्व

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जगन्नाथ रथयात्रा में श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़, राष्ट्रपति मुर्मू भी हुईं शामिल, जानें इतिहास और महत्व 

Jagannath Rath Yatra started in Puri : पुरी स्थित 12वीं सदी के जगन्नाथ मंदिर से रविवार दोपहर हजारों लोगों ने विशाल रथों को खींचकर लगभग 2.5 किलोमीटर दूर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान किया।

इस दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने तीनों रथों की परिक्रमा की और देवताओं के सामने माथा टेका। इस साल 53 साल बाद कुछ खगोलीय स्थितियों के कारण रथयात्रा 2 दिवसीय होगी।

पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने अपने शिष्यों के साथ भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के रथों के दर्शन किए तथा पुरी के राजा ने 'छेरा पहनारा' (रथ सफाई) अनुष्ठान पूरा किया, जिसके बाद शाम करीब 5.20 बजे रथ खींचने का कार्य शुरू हुआ। रथों में लकड़ी के घोड़े लगाए गए थे और सेवक पायलट श्रद्धालुओं को रथों को सही दिशा में खींचने के लिए मार्गदर्शन कर रहे थे।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने तीनों रथों की परिक्रमा की और देवताओं के सामने माथा टेका। राष्ट्रपति, ओडिशा के राज्यपाल रघुबर दास, ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने मुख्य जगन्नाथ रथ को जोड़ने वाली रस्सियों को खींचकर प्रतीकात्मक रूप से इस कवायद की शुरुआत की। विपक्ष के नेता नवीन पटनायक ने भी तीनों देवताओं के दर्शन किए।

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भगवान बलभद्र के लगभग 45 फुट ऊंचे लकड़ी के रथ को हजारों लोगों ने खींचा। इसके बाद देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ के रथ खींचे जाएंगे। पीतल के झांझ और हाथ के ढोल की ताल बजाते हुए पुजारी छत्रधारी रथों पर सवार देवताओं को घेरे हुए थे जब रथयात्रा मंदिर शहर की मुख्य सड़क से धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी।

पूरा वातावरण 'जय जगन्नाथ' और 'हरिबोल' के जयकारों से गूंज रहा था और श्रद्धालु इस पावन मौके पर भगवान की एक झलक पाने का प्रयास कर रहे थे। रथयात्रा शुरू होने से पहले विभिन्न कलाकारों के समूहों ने रथों के सामने 'कीर्तन' और ओडिसी नृत्य प्रस्तुत किए।

लगभग 10 लाख भक्त एकत्रित हुए : अनुमान है कि वार्षिक रथ उत्सव के लिए इस शहर में लगभग दस लाख भक्त एकत्रित हुए हैं। अधिकांश श्रद्धालु ओडिशा और पड़ोसी राज्यों से थे, कई विदेशी भी इस रथयात्रा में शामिल हुए, जिसे विश्व स्तर पर सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक माना जाता है।
इस बीच, मुख्यमंत्री मोहन माझी पुरी पहुंचे और पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती से मुलाकात की। माझी ने कहा कि उन्हें पुरी के शंकराचार्य से मिलने का अवसर मिला, जिन्होंने उन्हें राज्य के गरीबों और निराश्रितों को सेवा और न्याय प्रदान करने की सलाह दी।

शंकराचार्य ने मुख्यमंत्री को श्रीक्षेत्र पुरी और गोवर्धन पीठ के जीर्णो्ंद्धार के लिए कदम उठाने की भी सलाह दी है। इससे पहले दिन में तीन घंटे तक चली 'पहांडी' रस्म के पूरा होने के बाद अपराह्न 2.15 बजे भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को उनके रथों पर विराजमान किया गया।

श्रद्धालुओं ने 'जय जगन्नाथ' के जयकारे लगाए : जब भगवान सुदर्शन को सबसे पहले देवी सुभद्रा के रथ 'दर्पदलन' तक ले जाया गया तो पुरी मंदिर के सिंहद्वार पर घंटियों, शंखों और मंजीरों की ध्वनियों के बीच श्रद्धालुओं ने 'जय जगन्नाथ' के जयकारे लगाए। भगवान सुदर्शन के पीछे-पीछे भगवान बलभद्र को उनके 'तालध्वज रथ' पर ले जाया गया। सेवक भगवान जगन्नाथ और भगवान बलभद्र की बहन देवी सुभद्रा को विशेष शोभा यात्रा निकालकर 'दर्पदलन' रथ तक लाए।

अंत में भगवान जगन्नाथ को घंटियों की ध्वनि के बीच एक पारंपरिक शोभा यात्रा निकालकर 'नंदीघोष' रथ पर ले जाया गया। भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को रत्न जड़ित सिंहासन से उतारकर 22 सीढ़ियों (बैसी पहाचा) के माध्यम से सिंह द्वार से होकर एक विस्तृत शाही अनुष्ठान 'पहांडी' के जरिए मंदिर से बाहर लाया गया।

इस साल रथयात्रा 2 दिवसीय होगी : मंदिर के गर्भगृह से मुख्य देवताओं को बाहर लाने से पहले 'मंगला आरती' और 'मैलम' जैसे कई पारंपरिक अनुष्ठान आयोजित किए गए। मंदिर के गर्भगृह से देवताओं के निकलने से पहले 'मंगला आरती' और 'मैलम' जैसे कई अनुष्ठान किए गए। इस साल 53 साल बाद कुछ खगोलीय स्थितियों के कारण रथयात्रा दो दिवसीय होगी।

परंपरा से हटकर, 'नबजौबन दर्शन' और 'नेत्र उत्सव' सहित कुछ अनुष्ठान रविवार को एक ही दिन में किए जाएंगे।ये अनुष्ठान आमतौर पर रथयात्रा से पहले किए जाते हैं। 'नबजौबन दर्शन' का अर्थ है देवताओं का युवा रूप, जो 'स्नान पूर्णिमा' के बाद आयोजित 'अनासरा' (संगरोध) नामक अनुष्ठान में 15 दिनों के लिए दरवाजे के पीछे थे।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, 'स्नान पूर्णिमा' पर अत्यधिक स्नान करने के कारण देवता बीमार पड़ जाते हैं और इसलिए घर के अंदर ही रहते हैं। 'नबजौबन दर्शन' से पहले, पुजारियों ने 'नेत्र उत्सव' नामक विशेष अनुष्ठान किया, जिसमें देवताओं की आंखों की पुतलियों को नए सिरे से रंगा जाता है।

सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए : पुरी के पुलिस अधीक्षक पिनाक मिश्रा ने कहा कि सुरक्षाकर्मियों की 180 प्लाटून (एक प्लाटून में 30 कर्मी होते हैं) की तैनाती के साथ कड़े सुरक्षा इंतजाम किए गए हैं। एडीजी (कानून और व्यवस्था) संजय कुमार ने कहा कि उत्सव स्थल बड़ादंडा और तीर्थ नगरी के अन्य रणनीतिक स्थानों पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं।

अग्निशमन सेवा के महानिदेशक सुधांशु सारंगी ने कहा कि रथयात्रा के लिए शहर के विभिन्न हिस्सों और समुद्र तट पर कुल 46 दमकल गाड़ियां तैनात की गई थीं। उन्होंने कहा कि चूंकि गर्म और आर्द्र मौसम रह सकता है, इसलिए भीड़ पर पानी छिड़का गया।

पुरी। Puri Jagannath Rath Yatra 2024 आस्था और भक्ति का पर्व रथयात्रा रविवार को ओडिशा के पुरी में उस वक्त दर्दनाक मोड़ ले लिया जब भगवान बलभद्र के रथ तालध्वज को खींचने के दौरान भगदड़ मच गई।

इस हादसे में एक श्रद्धालु की मौत हो गई, जबकि 400 से ज्यादा लोग घायल हो गए। घायलों में कइयों की हालत गंभीर बताई जा रही है। भगदड़ में दो पुलिस कर्मचारी भी घायल हुए हैं। इसमें से एक पुलिस कर्मचारी का पैर टूटने की खबर सामने आई है।

हादसे के बाद मौके पर चीख-पुकार मच गई। घायलों को पुरी के जिला अस्पताल पहुंचाया गया, जहां इलाज चल रहा है। घटना की सूचना मिलते ही स्वास्थ्य मंत्री मुकेश महालिंग अस्पताल पहुंचे और घायलों का हालचाल जाना।

रथ यात्रा की धार्मिक मान्यता 

भगवान जगन्नाथ की ये रथ यात्रा पौराणिक समय से ही चलती आ रही है. माना जाता है कि जगन्नाथ जी प्रभु अपने भाई-बहनों कर साथ अपनी मौसी के घर जाया करते थे इसी प्रथा को निभाने के लिए हर वर्ष इस यात्रा को आयोजित किया जाता है. मान्यता ये भी है कि भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा 100 महायज्ञ के बराबर होती है जो भी व्यक्ति इस यात्रा में शामिल होता है भगवान जगन्नाथ जी की रथ को खींचता है. उसके जीवन के कष्ट समाप्त होते हैं भगवान उनपर अपनी असीम कृपा बरसाते हैं. इसलिए हर साल लाखो की तादाद में श्रद्धालु इस यात्रा में शामिल होते हैं. 

वहीं आपको बता दें कि भगवान जगन्नाथ आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से दशमी तिथि तक जन सामान्य के बीच रहते हैं। साथ ही इस अवधि में भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर विराजकर गुंडीचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। यह भव्य आयोजन 10 दिनों तक चलता है। साथ ही 53 साल बाद यह यात्रा दो-दिवसीय होगी। ग्रह-नक्षत्रों की गणना के अनुसार इस साल दो-दिवसीय यात्रा आयोजित की जा रही है। वहीं आपको बता दें कि आखिरी बार 1971 में दो-दिवसीय यात्रा का आयोजन किया गया था।

जगन्नाथ जी का रथ



भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष कहा जाता है। साथ ही इस रथ पर लहरा रहे ध्वज का नाम त्रिलोक्यमोहिनी नाम से जाता जाता है। वहीं इस रथ में 16 पहिए होते हैं। साथ ही यह रथ 13.5 मीटर ऊंचा होता है। वहीं इस रथ में खासकर पीले रंग के कपड़े का प्रयोग किया जाता है। विष्णु का वाहक गरूड़ इसकी रक्षा करता है।

बलराम जी का रथ

भगवान बलराम जी के रथ को तालध्वज नाम से जाना जाता है। वहीं इस रथ केरक्षक वासुदेव और सारथी मताली होते हैं। रथ के ध्वज को उनानी कहते हैं। वहीं जिस रस्सी से रथ खींचा जाता है, वह वासुकी कहलाता है। यह रथ 13.2 मीटर ऊंचा होता है। वहीं इसमें 14 पहिये होते हैं।

बहन सुभद्रा का रथ

शास्त्रों के अनुसार जगन्नाथ भगवान की छोटी बहन सुभद्रा का रथ का नाम पद्मध्वज है। वहीं इस रथ को तैयार करने में काले और लाल रंग के कपड़ों का प्रयोग किया जाता है। रथ की रक्षक जयदुर्गा व सारथी अर्जुन होते हैं।

आखिर क्यों भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के यहां ठहरते हैं

पद्म पुराण के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की बहन ने एक बार नगर देखने की इच्छा जताई. तब जगन्नाथ और बलभद्र अपनी लाडली बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर दिखाने निकल पड़े. इस दौरान वे मौसी के घर गुंडिचा भी गए और यहां सात दिन ठहरे. तभी से जगन्नाथ यात्रा निकालने की परंपरा चली आ रही है. नारद पुराण और ब्रह्म पुराण में भी इसका जिक्र है. मान्यताओं के मुताबिक, मौसी के घर पर भाई-बहन के साथ भगवान खूब पकवान खाते हैं और फिर वह बीमार पड़ जाते हैं. उसके बाद उनका इलाज किया जाता है और फिर स्वस्थ होने के बाद ही लोगों को दर्शन देते हैं.

जगन्नाथ रथयात्रा की महिमा 

भगवान जगन्नाथ की मुख्य लीला भूमि ओडिशा की पुरी है. पुरी को पुरुषोत्तम पुरी भी कहा जाता है. राधा और श्रीकृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक स्वयं श्री जगन्नाथ जी हैं. यानी राधा-कृष्ण को मिलाकर उनका स्वरूप बना है और कृष्ण भी उनके एक अंश हैं. ओडिशा में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की काष्ठ यानी कि लकड़ियों की अर्धनिर्मित मूर्तियां स्थापित हैं. इन मूर्तियों का निर्माण महाराजा इंद्रद्युम्न ने करवाया था.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. Digital media news इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

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