बकरीद का त्यौहार सोमवार (17 जून) को पूरे देश में धूमधाम से मनाया गया. इस दौरान मुस्लिम समाज ने अपने घरों में कुर्बानी की और अमन शांति की दुआएं कीं. ऐसे में बकरीद के मौके पर बकरों का बाजार भी गर्म रहा।
लाखों बकरे इस दौरान मार्केट से बेचे गए. ऐसे में दिल्ली के मार्केट से 11 लाख में 127 बकरे खरीदे गए, लेकिन ये बकरे कुर्बानी के लिए नहीं, बल्कि इसलिए खरीदे गए ताकि इन्हें कुर्बानी से बचाया जा सके. आइए आपको बताते हैं क्या कुछ है नीचे जानिए विस्तार से 👇 👇 👇 👇 👇
बकरीद में मुसलमान आखिर क्यों देते हैं कुर्बानी?, नीचे जानिए इसका क्या है परंपरा और इतिहास👇👇👇
11 लाख रुपये खर्च करके बचाए बकरे
दरअसल, दिल्ली की बकरा मंडी से 127 बकरों को कुर्बानी से बचाने के लिए खरीदा गया, जिसके लिए कुल 11 लाख रुपये खर्च किए गए. इन बकरों को ना सिर्फ खरीदा गया, बल्कि इनकी जीवन भर सेवा करने के भी इंतजाम किए गए. अब सोशल मीडिया पर इस काम की खूब चर्चा हो रही है. इस पहल की शुरुआत पुरानी दिल्ली के धर्मपुरा जैन मंदिर से जुड़े हुए लोगों ने की. दिगंबर जैन लाल मंदिर के प्रबंधन के सदस्य पुनीत जैन की अगर मानें तो यह सारा काम जैन संगठन से जुड़े लोगों ने किया. उन्होंने बताया कि हर जीव को जीने का हक है, जितना हमसे हो सकता था और जितनी हममे क्षमता थी हमने उसके अनुसार वह काम किया. गौर तलब है कि बकरों को खरीदने के बाद उनकी देखरेख की जा रही है, उन्हें समय समय पर दाना पानी दिया जा रहा है. डॉक्टर्स की टीम उनकी जांच कर रही है. थोड़े दिनों में बकरों को खातौली की एक बकरा शाला में भेज दिया जाएगा जिसे जैन समाज ही संचालित कर रहा है.
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो बकरीद से दो दिन पहले ही जैन संगठन के मन में विचार आया कि जानवरों को भी जीने का हक है. इसे लेकर जैन समाज के व्हाट्सएप ग्रुप पर एक पहल चलाई गई और बकरों को बचाने के लिए आर्थिक मदद की गुहार लगाई गई. जिससे देखते ही देखते 11 लाख रुपये की राशि इकट्ठा हो गई. ऐसे में इन पैसों से 127 बकरों की खरीद की गई और उन्हें कुर्बान होने से बचाया गया. वायरल वीडियो में संगठन के लोगों ने बकरों के साथ जियो और जीने दो के नारे लगाए.
वायरल वीडियो में शख्स एक खास धर्म को टारगेट करके उसके त्यौहार को हिंसा का पर्व बोल रहा है. शख्स वीडियो में बचाए गए बकरों के साथ खड़ा है और बोल रहा है कि 17 जून को भारत वर्ष में हिंसा का महातांडव होने जा रहा है जिसके चलते हमने 127 बकरों को बचाया है. इसके अलावा वीडियो में लोग नारे भी लगाते दिखाई दे रहे हैं.
बकरीद में मुसलमान क्यों देते हैं कुर्बानी?
इस्लामिक जानकार तारिक अनवर ने बताया कि इस्लाम धर्म के प्रमुख पैगंबरों में एक हजरत इब्राहिम से कुर्बानी देने की यह परंपरा शुरू हुई। हजरत इब्राहिम अलैह को औलाद नहीं थी।
अल्लाह से काफी मिन्नतों के बाद उन्हें बेटा हुआ। उसका नाम इस्माइल रखा गया। इब्राहिम अपने बेटे इस्माइल से बहुत प्यार करते थे। कहते हैं कि एक रात अल्लाह ने उनके ख्वाब में आकर उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी मांगी।
इब्राहिम को पूरी दुनिया में अपना बेटा ही प्यारा था। ऐसे में वे अपने बेटे की कुर्बानी देने जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक शैतान मिला और उसने उन्हें ऐसा करने से मना किया।
शैतान ने पूछा कि वह भला अपने बेटे की कुर्बानी देने क्यों जा रहे हैं? इसे सुन इब्राहिम का मन भी डगमगा गया लेकिन आखिरकार उन्हें अल्लाह की बात याद आई और कुर्बानी के लिए चल पड़े।
इब्राहिम ने बेटे की कुर्बानी देने के समय अपने आंखों पर पट्टी बांध ली, ताकि उन्हें दुख न हो। कुर्बानी के बाद जैसे ही उन्होंने अपनी पट्टी खोली, अपने बेटे को उन्होंने सही-सलामत सामने खड़ा पाया।
दरअसल, अल्लाह ने चमत्कार किया था। वह इब्राहिम के धैर्य और अल्लाह पर भरोसे की परीक्षा ले रहे थे। कुर्बानी वाले जगह पर दुंबे (भेड़) पड़ा था। तब से ही किसी जानवर की कुर्बानी दी जाने लगी।
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