इसके साथ ही अदालत ने निचली अदालत के फैसले को सही बताया और बेटे मनोज साव की याचिका खारिज कर दी।
अदालत ने अपने आदेश में महाभारत में यक्ष-युधिष्ठिर के बीच सवाल-जवाब को उद्धृत करते हुए लिखा है कि महाभारत में यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा-पृथ्वी से भी अधिक वजनदार क्या है? स्वर्ग से भी ऊंचा क्या है? हवा से भी क्षणभंगुर क्या है? और घास से भी अधिक असंख्य क्या है? इस पर युधिष्ठिर ने उत्तर दिया: मां धरती से भी भारी है, पिता स्वर्ग से भी ऊंचा है, मन हवा से भी क्षणभंगुर है व हमारे विचार घास से भी अधिक असंख्य हैं। इसकी व्याख्या करते हुए जस्टिस सुभाष चंद की अदालत ने बेटे को अपना पवित्र कर्तव्य निभाने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि यदि आपके माता-पिता आश्वस्त हैं, तो आप भी आश्वस्त महसूस करते हैं।
यदि वे दुखी हैं, तो भी आप दुखी महसूस करेंगे। माता-पिता बीज हैं, तो आप पौधा हैं, आपको अपने माता-पिता की अच्छाई और बुराई दोनों विरासत में मिलती है और एक व्यक्ति पर जन्म लेने के कारण कुछ ऋण होते हैं, जिसमें पिता और माता का ऋण भी शामिल होता है, जिसे हमें चुकाना होता है।
क्या है पूरा मामला
कोडरमा के फैमिली कोर्ट ने मनोज साव को आदेश दिया था कि वह अपने पिता को 3000 रुपए का मासिक गुजारा भत्ता दें। तब मनोज ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी। सुनवाई में कोर्ट को बताया गया कि पिता के पास कुछ कृषि योग्य भूमि है, वह उस पर खेती करने में सक्षम नहीं हैं। वह अपने बड़े बेटे प्रदीप कुमार साव पर भी निर्भर हैं, जिसके साथ वह रहते हैं। पिता ने पूरी संपत्ति में अपने छोटे बेटे मनोज को भी बराबर का हिस्सा दिया है, पर 15 साल से अधिक समय से उनके भरण-पोषण के लिए उनके छोटे बेटे ने कुछ नहीं किया है। पिता ने बताया कि मनोज गांव में एक दुकान चलाता है, जिससे उसे प्रति माह 50,000 रुपए की कमाई होती है।
इसके अलावा कृषि भूमि से उसे प्रति वर्ष दो लाख रुपए की अतिरिक्त आय होती है। इस पर कोर्ट ने छोटे बेटे को अपने पिता को 3000 रुपए हर महीने देने का आदेश दिया। इसके खिलाफ छोटे बेटे मनोज ने हाईकोर्ट की शरण ली थी।
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