दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश मनीष खुराना की अदालत ने इस मामले में विशेष कार्यकारी मजिस्ट्रट (एसईएम) द्वारा बहू के खिलाफ जारी सीआरपीसी की धारा 107/111 का कलंदरा रद्द करने का आदेश दिया है।
अदालत ने कहा कि यह जरूरी नहीं कि हर बार बहू गलत हो। यहां पुलिस को विवेक से काम लेना चाहिए था। घर के झगड़े को शांति भंग करने का आधार नहीं बनाया जाना चाहिए था। अदालत ने यह भी कहा कि एसईएम ने इस मामले में बहू का पक्ष तक नहीं सुना और ना ही पूरे मामले के तथ्यों पर गंभीरता से विचार किया। सीधे बहू को कटघरे में खड़ा कर उसे शांति भंग करने का दोषी मानते हुए मुचलका भरने का आदेश दे दिया।
घरेलू विवाद को दूसरा रूप देने का प्रयास
याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष कहा कि उसका अपनी सास के साथ 20 दिसंबर 2018 को झगड़ा हो गया था। सास ने पुलिस को फोन कर दिया। पुलिस ने बहू के खिलाफ शांति भंग करने का कलंदरा काट दिया। महिला को विशेष कार्यकारी मजिस्ट्रेट(एसईएम) के समक्ष पेश होने को कहा गया। एसईएम ने इस मामले में बहू को दोषी ठहराते हुए छह महीने की अवधि के लिए मुचलका भरने के आदेश दिया। बहू ने एसईएम के इस आदेश को सत्र अदालत में चुनौती दी। सत्र अदालत ने इस मामले को शांति भंग होने का मुकदमा मानने से ही इनकार कर दिया है।
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