बता दें, मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा से 78 किलोमीटर दूर स्थित स्थान को पातालकोट के नाम से जाना जाता है जहां 12 गांव का समूह है। ये जगह प्राकृतिक सुंदरता और पहाड़ियों से घिरी हुई जगह है। इतना ही नहीं बल्कि यहां पर 2-3 गांव तो ऐसे हैं जहां कोई भी आसानी से नहीं जा पाता है। कहा जाता है कि यहां पर सूर्य की किरणें भी नहीं पहुंच पाती है, ऐसे में इस गांव में कभी सवेरा भी नहीं होता।
कहा जाता है कि यहां के लोग खाने पीने की चीजें आसपास ही उगा लेते हैं और केवल नमक ही बाहर से खरीद कर लाते हैं। बता दें, यह रहस्यमई पातालकोट सतपुड़ा की पहाड़ियों में है जिसे औषधियों का खजाना भी माना जाता है। इन गांवों में भूरिया जनजाति के लोग रहते हैं और जो झोपड़ी में अपना निवास करते हैं।
रिपोर्ट की माने तो इन गांवों के लोग बाहरी दुनिया से बिलकुल कटे हुए हैं, हालांकि अभी-अभी इनके गाँव से सड़क जुड़ी है। इतना ही नहीं बल्कि इस जगह पर कई जानलेवा बीमारियों का आसानी से इलाज होता है। यहां के स्थानीय लोग इन्हीं जड़ी-बूटियों का प्रयोग कर स्वस्थ रहते हैं।
पातालकोट के गांव धरातल से लगभग 3 हजार फुट नीचे बसे हुए हैं। कहा जाता है कि, पातालकोट की तलहटी में एक समय पर करीब 20 गाँव बसे थे, लेकिन प्राकृतिक प्रकोप के चलते वर्तमान में अब केवल 12 गाँव ही शेष बचे हैं। बता दें, इस गांव में दिन में धूप नहीं पहुंच पाती है इसके चलते यहां हमेशा शाम जैसा ही नजारा देखने को मिलता है।
पौराणिक मान्यता के मुताबिक ये भी कहा जाता है कि, भगवान शिव की आराधना कर रावण का पुत्र मेघनाथ इसी स्थान से पाताल लोक पहुंचा था। यहां के एक गांव में मात्र 7-8 से ज्यादा घर नहीं होते हैं। इस वजह से इस जगह को पाताल लोक जाने का दरवाजा भी कहा जाता है।
एक टिप्पणी भेजें
0टिप्पणियाँ