जानिए क्या हैं कच्चाथीवू द्वीप विवाद? जिसे कांग्रेस ने श्रीलंका को देकर कि बड़ी भूल

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जानिए क्या हैं कच्चाथीवू द्वीप विवाद? जिसे कांग्रेस ने श्रीलंका को देकर कि बड़ी भूल

Katchatheevu island Detailed Story: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को उत्तर प्रदेश के मेरठ से अपने लोकसभा चुनाव अभियान की शुरुआत की। इस दौरान उन्होंने कई मुद्दों पर विपक्ष को घेरा।

उन्होंने कच्चाथीवू द्वीप का जिक्र कर कांग्रेस और इंडिया गठबंधन पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस शासनकाल के दौरान इस द्वीप को लेकर श्रीलंका के साथ समझौता किया गया था।

भारतीय प्रधानमंत्री पहले भी कच्चातीवू द्वीप को लेकर कांग्रेस पर आक्रामक रहे हैं और उन्होंने पिछले साल अगस्त महीने में भी कच्चातीवू द्वीप का जिक्र कर कांग्रेस पार्टी को घेरने की कोशिश की थी।

 

पीएम मोदी ने रैली को संबोधित करते हुए कहा, ''मेरठ की इस धरती से आज मैं पूरे देश को बताना चाहता हूं कि कैसे कांग्रेस और इंडी अलायंस देश की अखंडता और देश की एकता को तोड़ते रहे हैं। आज ही कांग्रेस का एक और देश विरोधी कारनामा देश के सामने आया है। तमिलनाडु में भारत के समुद्री तट से कुछ दूर, कुछ किलोमीटर दूरी पर श्रीलंका और तमिलनाडु के बीच में समुंदर में एक टापू है, एक द्वीप है कच्चाथीवू अलग-अलग नाम भी लोग बोलते हैं।''

पीएम मोदी ने आगे कहा, ''ये द्वीप सुरक्षा की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। जब हमारा देश आजाद हुआ था तब हमारे पास था और ये हमारे भारत का अभिन्न अंग रहा है लेकिन कांग्रेस ने चार-पांच दशक पहले इसे यह कह कर दे दिया कि ये द्वीप गैर-जरूरी है, फालतू है, यहां तो कुछ होता ही नहीं है। इन्होंने मां भारती का एक अंग काट दिया और भारत से अलग कर दिया। देश कांग्रेस के रवैये की कीमत आज तक चुका रहा है।''

इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी के इस द्वीप को लेकर ट्वीट भी किया था। उन्होंने ट्वीट में कहा, कि "आंखें खोलने वाली और चौंका देने वाली! नए तथ्यों से पता चलता है, कि कैसे कांग्रेस ने बेरहमी से #Katchatheevu को छोड़ दिया। इससे हर भारतीय नाराज है और लोगों के मन में यह बात फिर से बैठ गई है, कि हम कभी भी कांग्रेस पर भरोसा नहीं कर सकते!"

अगस्त 2023 में पीएम मोदी ने इस ट्वीप का जिक्र करते हुए कहा था, कि "कांग्रेस का इतिहास मां भारती को छिन्न-भिन्न करने का रहा है।"

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री मोदी का यह सोशल मीडिया पोस्ट बीजेपी तमिलनाडु प्रमुख के अन्नामलाई की तरफ से दस्तावेजों के खुलासे के बाद आया है, जिससे यह संकेत मिलता है, कि कांग्रेस ने कभी भी छोटे, निर्जन द्वीप को ज्यादा महत्व नहीं दिया। रिपोर्ट के अनुसार, जवाहरलाल नेहरू ने एक बार यहां तक कहा था, कि वह "द्वीप पर अपना दावा छोड़ने" में बिल्कुल भी संकोच नहीं करेंगे।

यह कहानी नई नहीं है और जिन परिस्थितियों में इंदिरा गांधी के शासनकाल में भारत ने 1974 में कच्चातीवू पर अपना दावा छोड़ दिया था, उसे अच्छी तरह से समझना जरूरी है। हालांकि, बीजेपी के तमिलनाडु अभियान ने इसे राज्य के सबसे गर्म राजनीतिक विषयों में से एक बना दिया है।

आइये जानते हैं, कि कच्चातीवू द्वीप को लेकर विवाद क्या है, खासकर तमिलनाडु राज्य की राजनीति में इस विषय पर एक बार फिर से राजनीति क्यों गर्म है?

 

कच्चातीवू द्वीप कहां है?

कच्चातीवु भारत और श्रीलंका के बीच पाक जलडमरूमध्य में 285 एकड़ का एक निर्जन स्थान है। इस द्वीप की सबसे ज्यादा लंबाई 1.6 किलोमीटर है, जबकि इसकी चौड़ाई 300 मीटर से थोड़ा ज्यादा है।

यह द्वीप भारत की तट से करीब 33 किलोमीटर दूर, रामेश्वरम के उत्तर-पूर्व में स्थित है। यह जाफना से लगभग 62 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में, श्रीलंका के उत्तरी सिरे पर स्थित है, और श्रीलंका के बसे हुए डेल्फ़्ट द्वीप से 24 किमी दूर है।

इस द्वीप पर सिर्फ एक ही संरचना का 20वीं सदी में अंग्रेजो ने एक कैथोलिक चर्च का निर्माण करवाया था, जिसका नाम सेंट एंथोनी चर्च है। इस चर्च का संचालन भारत और श्रीलंका, दोनों देशों के पादरी मिलकर करते हैं, और वार्षिक उत्सव के दौरान दोनों देशों से काफी श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। साल 2023 में 2500 भारतीय श्रद्धालु इस द्वीप पर पहुंचे थे।

कच्चातीवु द्वीप पर स्थाई निवास संभव नहीं है, क्योंकि यहां प्राकृतिक जल का कोई स्रोत नहीं है, यानि यहां पीने का पानी उपलब्ध नहीं है।

कच्चातीवू द्वीप का इतिहास क्या है?

14वीं शताब्दी में ज्वालामुखी विस्फोट की वजह से कच्चातीवू द्वीप का निर्माण हुआ था, लिहाजा इस द्वीप का इतिहास कोई ज्यादा पुराना नहीं है। वहीं, प्रारंभिक मध्ययुगीन काल में, इस पर श्रीलंका के जाफना साम्राज्य का नियंत्रण था। 17वीं शताब्दी में, इसका नियंत्रण रामनाद जमींदारी के हाथ में चला गया, जो रामनाथपुरम से लगभग 55 किमी उत्तर-पश्चिम में स्थित है।

ब्रिटिश राज के दौरान यह मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा बन गया। लेकिन 1921 में, भारत और श्रीलंका, जो उस समय ब्रिटिश उपनिवेश थे, दोनों ने मछली पकड़ने की सीमा निर्धारित करने के लिए कच्चाथीवू पर दावा किया। एक सर्वेक्षण में श्रीलंका में कच्चातिवु को चिह्नित किया गया था, लेकिन भारत के एक ब्रिटिश प्रतिनिधिमंडल ने रामनाद साम्राज्य द्वारा द्वीप के स्वामित्व का हवाला देते हुए इसे चुनौती दी थी।

ये विवाद लगातार चलता गया और 1974 तक इसे सुलझाया नहीं जा सका।

कच्चातीवू द्वीप पर मौजूदा समझौता क्या है?

साल 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत और श्रीलंका के बीच समुद्री सीमा को हमेशा के लिए सुलझाने की कोशिश की थी।

इस समझौते के एक हिस्से के रूप में, जिसे 'भारत-श्रीलंकाई समुद्री समझौते' के रूप में जाना जाता है, इंदिरा गांधी ने कच्चातीवु को श्रीलंका को सौंप दिया। उस समय, उन्होंने सोचा था, कि इस द्वीप का कोई रणनीतिक महत्व नहीं है और इस द्वीप पर भारत का दावा खत्म करने से इसके दक्षिणी पड़ोसी देश श्रीलंका के साथ भारत के संबंध और गहरे हो जायेंगे।

इस समझौते के तहत, भारतीय मछुआरों को कच्चातीवू तक पहुंचने की इजाजत दी गई थी, लेकिन समझौते से मछली पकड़ने के अधिकार का मुद्दा अभी भी सुलझ नहीं सका है। श्रीलंका ने भारतीय मछुआरों के कच्चातीवू तक पहुंचने के अधिकार को "आराम करने, जाल सुखाने और बिना वीजा के कैथोलिक मंदिर की यात्रा" तक सीमित बताया है। और इस क्षेत्र में मछली पकड़ने की इजाजत देने से इनकार कर दिया है।

1976 में भारत में आपातकाल के दौरान एक और समझौता किया गया, जिसमें किसी भी देश को दूसरे के विशेष आर्थिक क्षेत्र में मछली पकड़ने से रोक दिया गया। और कच्चातीवू द्वीप, जो दोनों ही देशों के स्पेशल इकोनॉमिक जोन क्षेत्र के बिल्कुल किनारे आ जाता है, लिहाजा ये विवाद बना ही रह गया।

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श्रीलंका गृहयुद्ध का कच्चातीवू द्वीप पर असर

साल 1983 से 2009 के बीच, श्रीलंका में खूनी गृहयुद्ध छिड़ जाने की वजह से सीमा कच्चातीवू विवाद ठंडे बस्ते में चला गया।

चूंकि, गृहयुद्ध के दौरान श्रीलंकाई नौसैनिक बल, जाफना से बाहर स्थित लिट्टे की सप्लाई चेन को काटने के काम में व्यस्त थे, इसलिए भारतीय मछुआरों के लिए श्रीलंकाई जलक्षेत्र में जाना आम बात बन गई थी। जिसकी वजह से श्रीलंकाई मछुआरों में काफी नाराजगी रहती थी, क्योंकि बड़े भारतीय ट्रॉलर जहाज ना सिर्फ काफी ज्यादा मछलियां पकड़ते थे, बल्कि श्रीलंकाई मछली पकड़ने के जाल और उनकी नावों को भी नुकसान पहुंचाते थे।

साल 2009 श्रीलंकाई गृहयुद्ध खत्म हो गये और उसके बाद नाटकीय अंदाज में स्थितियां बदलने लगीं। कोलंबो ने अपनी समुद्री सुरक्षा बढ़ानी शुरू कर दी और भारतीय मछुआरों पर अब उन्होंने कार्रवाई करनी शुरू कर दी। भारतीय मछुआरों की गिरफ्तारियां शुरू हो गईं और कच्चातीवू द्वीप के आसपास श्रीलंका ने भारतीय मछुआरों के मछली पकड़ने पर सख्ती से रोक लगानी शुरू कर दी।

आज तक, श्रीलंकाई नौसेना नियमित रूप से भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार करती है और हिरासत में टॉर्चर करती है, जिसकी वजह से कई मछुआरों की मौत हो चुकी है। जब जब मछुआरों की मौत होती है, कच्चातीवू द्वीप को फिर से भारत में मिलाने की मांग उठने लगती है। लिहाजा, कच्चातीवू द्वीप को लेकर तामिलनाडु की राजनीति गर्म हो जाती है।

कच्चातीवू द्वीप श्रीलंका को देना रणनीतिक गलती?

भारत के दिग्गज विदेश नीति एक्सपर्ट ब्रह्मा चेलानी ने कच्चातीवू द्वीप को श्रीलंका को देना भारत की बड़ी रणनीतिक भूल बताया है।

उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा है, कि "कच्चातीवू एक छोटा सा द्वीप हो सकता है, लेकिन सीमाओं को लेकर भारत के प्रधानमंत्रियों के उदारता का एक लंबा रिकॉर्ड रहा है।"

उन्होंने कहा है, कि "मणिपुर की कबाव घाटी और सिंधु जल का बड़ा हिस्सा उपहार में देने से लेकर 1954 में तिब्बत में अपने अलौकिक अधिकारों को छोड़ने और फिर 2003 में औपचारिक रूप से अपना महत्वपूर्ण तिब्बत कार्ड छोड़ने से लेकर तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र को चीन के हिस्से के रूप में मान्यता देना, भारत के प्रधानत्रियों के उदारता का ये एक लंबा रिकॉर्ड है।

उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा है, कि "भारतीय कूटनीति के भोलेपन का उदाहरण 1972 का शिमला समझौता है, जिसके तहत भारत ने बगैर कुछ हासिल किए बातचीत की टेबल पर युद्ध में जो लाभ मिला था, उसे गंवा दिया।"

ब्रह्मा चेलानी ने अपने ट्वीट में लिखा है, कि "भारत अपने इतिहास को फिर से याद कर रहा है, क्योंकि मोदी सहित लगभग हर भारतीय प्रधान मंत्री ने शासन-कला की अनिवार्यताओं को सीखने या पिछली भूलों से सबक लेने के बजाय, विदेश-नीति के पहिये को फिर से बनाने की कोशिश की है।"


उनका इशारा मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में, गलवान घाटी हिंसा होने तक चीन को लेकर अपनाए गये रणनीति को लेकर था, जब मोदी सरकार ने चीन से शांति के लिए लगातार बैठकें की थी। खुद प्रधानमंत्री मोदी चीन गये थे और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का भारत दौरे के दौरान भव्य स्वागत किया गया था। लेकिन, सरकार को उस वक्त चीनी मकसद का अहसास हुआ, जब गलवान घाटी में चीनी घुस आए और हिंसक झड़प में कई भारतीय सैनिक मारे गये।

अब जबकि चीन लगातार हिंद महासागर में घुसपैठ कर रहा है, लिहाजा कच्चातीवू द्वीप अब रणनीतिक तौर पर काफी महत्वपूर्ण हो गया है और सरकार से अपील की जा रही है, कि फिर से कच्चातीवू द्वीप पर भारत अपना दावा करे। फिलहाल, इस मुद्दे पर राजनीतिक बयानबाजी से इतर कुछ और होने की संभवना नहीं है, लेकिन आगे भी कच्चातीवू पर दावा करना भारत के लिए आसान नहीं है, क्योंकि चीन ऐसे ही किसी मौके की तलाश में है, जब वो श्रीलंका को भारत के लिए भड़काकर हिंद महासागर में कोई और ड्रामा कर सके।

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