मोहम्मद मुइज्जू, जिन्हें चीन समर्थक के रूप में देखा जाता है, उन्होंने भारतीय सैन्य कर्मियों को बेदखल करने और भारत के साथ व्यापार को संतुलित करने के वादे पर चुनावी अभियान चलाया था और चुनाव में उन्हें जीत हासिल हुई है। जबकि, उन्होंने जिस राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह को चुनाव में हराया, वो भारत समर्थक थे।
ऐसी रिपोर्ट है, कि मालदीव में इंडियन आर्मी के 75 अधिकारी रहते हैं, जिनके खिलाफ मालदीव में पिछले 2 सालों से काफी तेज अभियान चलाया गया और लगातार आवाज उठती रही, कि भारतीय सेना की मौजूदगी मालदीव की संप्रभुता का उल्लंघन है।
शपथ लेने के बाद नये राष्ट्रपति का ऐलान
शपथ ग्रहण के बाद मोहम्मद मुइज्जू ने कहा, कि "स्वतंत्रता और संप्रभुता की रेखाएं स्पष्ट रूप से खींची जाएंगी। विदेशी सैन्य उपस्थिति हटा दी जाएगी।" हालांकि, उन्होंने आगे ये भी कहा, कि "मैं विदेशों से मित्रता बनाए रखूंगा और पास और दूर के देशों के साथ कोई दुश्मनी नहीं होगी।"
उन्होंने कहा कि ऐसी सीमाएं तय करने के मालदीव के अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए।
मालदीव से भारतीय सैनिकों को हटाने का क्या कारण है?
सितंबर के राष्ट्रपति चुनाव में आश्चर्यजनक जीत के बाद मुइज्जू को मुख्य न्यायाधीश यूएस अहमद मुथासिम अदनान ने शपथ दिलाई। चुनाव को एक आभासी जनमत संग्रह के रूप में देखा गया था, कि किस क्षेत्रीय शक्ति - चीन या भारत - का हिंद महासागर द्वीपसमूह पर सबसे बड़ा प्रभाव बनेगा।
मोहम्मद मुइज्जू की जीत चीन की जीत और भारत के लिए बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है।
हालांकिस मालदीव में भारतीय सैनिकों की संख्या सार्वजनिक रूप से ज्ञात नहीं है, लेकिन कई मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया है कि वहां 75 सैनिक हैं।
आलोचकों का कहना है, कि भारतीय सैन्य कर्मियों की भूमिका और संख्या के संबंध में भारत और सोलिह सरकार के बीच समझौते में गोपनीयता के कारण संदेह और अफवाहें पैदा हुई हैं। भारत ने मालदीव को अपने तटों की रक्षा और आपदाओं के समय राहत और बचाव के लिए दो हेलीकॉप्टर गिफ्ट में दिए हुए हैं और इसी बात को मालदीव में चीन समर्थक नेताओं ने राजनीति का मुद्दा बनाया हुआ है।
आपको बता दें, कि मालदीव में एक दशक से ज्यादा समय से भारत विरोधी भावनाएं पनप रही हैं, जब प्रोग्रेसिव पार्टी (पीपीएम) के अब्दुल्ला यामीन अब्दुल गयूम 2013 में राष्ट्रपति चुने गए थे और उन्होंने खुलकर भारत विरोधी मुहिम चलाई थी।
वहीं, पिछले 3 सालों से मालदीव की विपक्षी पार्टियों ने 'इंडिया ऑउट' कैम्पेन चलाया है, जिसकी वजह से भारत विरोधी भावनाओं का काफी विस्तार हुआ है।
मालदीव में कहां है मिलिट्री की मौजूदगी?
मोहम्मद मुइज्जू को चीन का समर्थक माना जाता है और अगर भारतीय मिलिट्री को मालदीव में झटका लगता है, जाहिर तौर पर उससे चीन को फायदा होगा।
हालांकि, चीन समर्थक पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन (2013-18) ने ही अपने कार्यकाल के दौरान भारत को दो ध्रुव एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (एएलएफ) हेलीकॉप्टरों को वापस कर अपमानित करने की कोशिश की थी, जिससे समुद्री मौसम की निगरानी की जाती थी।
लिहाजा माना जा रहा है, कि इस बार भी कुछ इसी तरह के कदम उठाए जा सकते हैं।
यामीन प्रशासन ने आरोप लगाया था, कि भारत की सैन्य कार्रवाई की इच्छा "उसकी संप्रभुता का अनादर है।" दावा किया गया, कि घरेलू राजनीति शुरू होने पर नई दिल्ली ने मालदीव द्वीप को घेरने का इरादा किया था और पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने भारत को इसमें शामिल होने के लिए कहा था।
उनका आरोप था, कि मालदीव की घरेलू राजनीति में भारत हस्तक्षेप करने के लिए कभी भी सैन्य अभियान शुरू कर सकता है। और उन्होंने भारत के दिए दोनों ध्रुव हेलीकॉप्टर वापस लौटा दिए थे।
लेकिन, 2018 में मोहम्मद सोलिह सत्ता में आ गये, जो भारत के कट्टर समर्थक थे।
सत्ता संभालने के बाद, इब्राहिम मोहम्मद सोलिह ने यामीन सरकार द्वारा पारित निर्देश को पलट दिया और उसके बाद मालदीव में भारतीय सेना का प्रभाव बढ़ गया। भारतीय सेना के हेलीकॉप्टर्स का ऑपरेशन फिर शुरू हो गया। लेकिन, अब जब सोलिह सरकार का पतन हो गया है और नये राष्ट्रपति ने शपथ ले लिया है, तो फिर भारत के सामने हिंद महासागर को चीन से मुक्त रखने को लेकर सवाल खड़े हो गये हैं।