9 अगस्त, 1942 को करीब एक लाख लोगों के साथ ठाकुर नवाब सिंह ने सीतामढ़ी कचहरी पर तिरंगा फहराया था। इससे गुस्साए अंग्रेजों ने नवाब सिंह को जिंदा या मुर्दा पकड़ने पर 10 हजार रुपये इनाम की घोषणा कर दी थी।
अंग्रेजों ने पुश्तैनी मकान को कर दिया था राख
महुअरिया स्थित नवाब सिंह के पुश्तैनी मकान व शिवहर गोला को अंग्रेजों ने जला दिया। तत्कालीन कमिश्नर टेन ब्रुक ने नवाब सिंह की गिरफ्तारी के लिए सिपाहियों की टीम गठित की, लेकिन वह भूमिगत हो गए। 4 दिसंबर, 1942 को पूर्वी चंपारण के खोरी पाकड़ गांव के पास उनकी मृत्यु हो गई।
ठाकुर नवाब सिंह ने अपनी मौत से पहले अपने साथियों से कहा था कि उनके शव को तत्काल जला दिया जाए ताकि अंग्रेज उन्हें छू न सके। नवाब सिंह की मौत के बाद उनके साथियों ने हुक्म का पालन किया और तत्काल प्रभाव से लालबकेया नदी के संगम पर उनका दाह संस्कार कर दिया था।
महात्मा गांधी के करीबी रहे
स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर नवाब सिंह की वीरता के किस्से आज भी लोगों की जुबान पर है। उनके नाम पर शहर में नवाब हाईस्कूल की स्थापना की गई। यहां स्थापित उनकी प्रतिमा लोगों को प्रेरित करती है।
बताया जाता है कि नवाब सिंह महात्मा गांधी और देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के करीबी रहे। नवाब सिंह ही महात्मा गांधी को पहली बार शिवहर लेकर आए थे।
क्रांतिकारियों से कैसे जुड़े?
डॉ. राजेंद्र प्रसाद की आत्मकथा के अनुसार, साल 1917 में महात्मा गांधी के चंपारण आगमन के दौरान नवाब सिंह स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े थे। इससे पहले वे साल 1905 में बंग भंग आंदोलन के दौरान वे बंगाल के क्रांतिकारियों के संपर्क में आए। 1911 के पूर्व बिहार का उच्च न्यायालय कोलकाता में था।
मुकदमे के सिलसिले में कोलकाता जाने के क्रम में उनकी मुलाकात बंगाल के क्रांतिकारियों से हुई थी। साल 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। साल 1930 में नमक सत्याग्रह आंदोलन के दौरान उन्हें शिवहर से गिरफ्तार कर लिया गया था।
आजादी के लिए जेल भी गए
नमक सत्याग्रह आंदोलन के दौरान हुई गिरफ्तारी के बाद उन्हें छह माह की सजा सुनाई गई थी। उन्होंने हजारीबाग जेल में डॉ. राजेंद्र प्रसाद के साथ भी वक्त गुजारा था। नवाब सिंह के पौत्र ठाकुर रत्नाकर राणा बताते हैं कि नवाब सिंह ने मां भारती की आजादी के लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी। युवा पीढ़ी को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।
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