Kohinoor: लंदन ऑफ टॉवर में रखा जाएगा 'कोहिनूर', हर कोई निहार सकेगा इसकी खूबसूरती, जानिए इसकी कहानीं...
ब्रिटेन की महारानी के मुकुट पर लगे कोहिनूर हीरे की एक बार फिर से चर्चा शुरू हो गई है। पिछले साल महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के निधन के बाद कोहिनूर हीरे से जड़ा ताज किंग चार्ल्स तृतीय की पत्नी क्वीन कंसोर्ट कैमिला को सौंपा गया था। लेकिन, क्वीन कैमिला ने इस विवादित ताज को पहनने से इनकार कर दिया था। अब खबर है कि इस कोहिनूर हीरे को मई में सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया जाएगा। अभी इसे शाही खजाने में रखा गया है।मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अब कोहिनूर लगे मुकुट, कुछ अन्य शाही आभूषणों और प्रतीक चिह्नों को 'टावर आफ लंदन' में सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए रखा जाएगा। इसे 'विजय के प्रतीक' के तौर पर प्रदर्शित किया जाएगा। विजुअल के लिए इसके इतिहास को भी बताया जाएगा। ये प्रदर्शनी मई में आम लोगों के लिए खोल दी जाएगी।
क्या है कोहिनुर की कहानी
भारत से ब्रिटेन पहुंचे कोहिनूर 105.6 कैरेट का है। इसे दुनिया का सबसे बड़ा हीरा माना जाता है। इसका इतिहास पांच हजार साल से भी पुराना है। हीरे का वर्तमान नाम फारसी में है, जिसका अर्थ है 'रोशनी का पहाड़'। इतिहासकार बताते हैं कि पांच हजार साल पहले इस हीरे की खोज आंध्र प्रदेश गुंटूर जिले में स्थित गोलकुंडा की खदानों में खुदाई के दौरान हुई थी।
इसके बाद 1304 में ये मालवा पहुंचा। यहां से 1306 में ओरुगल्लु, 1323 में दिल्ली, 1339 में समरकंद उज्बेकिस्तान, 1526 में वापस दिल्ली, 1739 में पार्शि (मौजूदा समय ईरान), 1747 में काबुल अफगानिस्तान, 1800 में पंजाब, 1849 में लाहौर, 1854 में ये ब्रिटेन चला गया।
कोहिनूर हीरा अविभाजित पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह के खजाने में था। वहां से इसे अंग्रेज अपने साथ ले गए और तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर ने महारानी विक्टोरिया को भेंट किया था। इसके बाद कोहिनूर हीरे को मुकुट में जड़वाकर उसे पहना गया। बताते हैं कि मुकुट में जड़वाने के दौरान कारीगरों ने हीरे को तराशकर छोटा कर दिया। बावजूद इसके कोहिनूर दुनिया में उपलब्ध सबसे बड़े हीरों में शुमार है।
कोहिनूर के सफर में ये भी अहम
कोहिनूर हीरे के असली उत्तराधिकारी महाराजा दलीप सिंह को तो सभी जानते हैं, लेकिन उनका देहरादून जिले की मसूरी से भी गहरा नाता था। पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह के बेटे महाराजा दलीप सिंह का जन्म वर्ष 1838 में हुआ था। पिता की मौत के बाद दलीप सिंह को छोटी सी उम्र में उनकी मां रानी जिंद कौर के संरक्षण में राजगद्दी पर बैठा दिया गया।
इसके बाद हालात बिगड़े और वर्ष 1845 में सिख-अंग्रेजों के युद्ध में अंग्रेजों की जीत हो गई। इसके बाद सिखों को सतलुज नदी के बायीं ओर का सारा क्षेत्र और जलंधर अंग्रेजों को समर्पित करना पड़ा। अंग्रेजों ने रानी जिंद कौर से नाबालिग राजा दलीप सिंह का संरक्षण भी छीन लिया और उनके सारे अधिकारों को सिखों की परिषद में निहित कर दिया।
इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि वर्ष 1852 में अंग्रेज दलीप सिंह को 14 वर्ष की उम्र में गोपनीय तरीके से मसूरी लेकर आए थे। यहां उन्हें दो साल तक बार्लोगंज के बारलो मेनोर हाउस में सर जॉन लॉगइन और उनकी पत्नी लेडी लॉगइन के संरक्षण में रखा गया था।
दो साल तक मसूरी में रहकर महाराजा दलीप सिंह अंग्रेज जानकारों को अपनी जेब से पैसा देकर खगोल शास्त्र, रसायन शास्त्र, ललित कला, ऊर्जा, प्राचीन भारत का इतिहास, मौसम विज्ञान, प्राकृतिक दर्शन, हिमालय की भौगोलिक स्थिति, अंग्रेजी भाषा की खासियत सहित विभिन्न विषयों पर लेक्चर कराते थे। इसे लेकर मसूरीवासियों में खासा उत्साह रहता था।
कुछ समय बाद दलीप सिंह की सेना और अंग्रेजों के बीच युद्ध छिड़ गया। इस बार भी अंग्रेजों की जीत हुई और उन्होंने दलीप सिंह के साम्राज्य को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया। महाराजा दलीप सिंह को भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी की मौजूदगी में प्रसिद्ध कोहिनूर हीरे सहित अपनी संपत्ति समर्पित करने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर करने पड़े थे।
अंग्रेजों ने धोखे से कोहिनूर को कब्जे में ले लिया था। कोहिनूर को लॉर्ड डलहौजी लाहौर से मुंबई लेकर आए थे। वर्ष 1854 में हेनरी लॉरेंस कोहिनूर को लेकर इंग्लैंड चले गए और इसे महारानी विक्टोरिया को भेंट किया गया। यहां कोहिनूर हीरे को महारानी के मुकुट में लगा दिया गया। बकौल गोपाल भारद्वाज अंग्रेजों ने यह अफवाह फैला दी कि कोहिनूर हीरे को महाराज दलीप सिंह ने उन्हें गिफ्ट किया है। कोहिनूर की वर्तमान कीमत लगभग 150 हजार करोड़ रुपए है। 105 कैरेट (लगभग 21.600 ग्राम) का यह हीरा है. source: digital media
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