Joshimath News: ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ... जोशीमठ ही नहीं उत्तराखंड के इन 5 जिलों में भी दहशत...

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इतिहास खंगालने पर पता चलता है कि, उत्तराखंड (Uttrakhand) का सबसे पुराना शहर है जोशीमठ (Joshimath). अब खात्मे की कगार पर है, इसलिए क्योंकि आपदा दस्तक दे चुकी है. लोगों ने अपने घरों से सोफा बेड पलंग और सालों से जोड़ी गई गृहस्थी को समेटना शुरु कर दिया है. ताकि समय रहते वो अपने सामान को सही जगह शिफ्ट कर सकें. जोशीमठ में घरों में दरारें पड़ गई हैं, ये लगातार मोटी होती जा रही हैं. लेकिन आपदा का शिकार सिर्फ ये शहर ही नहीं, उत्तराखंड के 5 और जिले भी हैं. आइए जानते हैं कौन से हैं वो 5 जिले और इनमें समस्या की जड़ क्या है?

टिहरी-गढ़वाल सुरंग ने बर्बाद कर दिया!

आज तक से जुड़ी नेहा चंद्रा कि रिपोर्ट के मुताबिक टिहरी जिले की नरेंद्रनगर विधानसभा क्षेत्र में एक गांव है अटाली. इस गांव से गुजरती है ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन. इस रेल लाइन ने यहां रहने वाले लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. अटाली गांव दो तरफा दिक्कत में फंसा हुआ है, यहां एक छोर पर भारी लैंडस्लाईड हुई थी, जिस वजह से यहां के मकानों में दरारे आ गईं हैं. वहीं गांव के दूसरे छोर पर सुरंग में की जा रही ब्लास्टिंग के चलते गांव के घर दरक रहे हैं. अटाली गांव के लोग अब अपने पुनर्वास की मांग कर रहे हैं. अटाली से इतर गूलर, व्यासी, कौडियाला और मलेथा गांव भी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन परियोजना की वजह से समस्या में हैं.

 टिहरी गढ़वाल के अटाली गांव के एक छोर पर भारी लैंडस्लाइड से दर्जनों मकानों में दरारें आ गई हैं. (फोटो: आज तक)

पौड़ी: सुरंग ने जीना मुहाल किया

यहां रहने वाले लोगों की मानें तो ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन के सुरंग निर्माण कार्य से श्रीनगर के हेदल, आशीष विहार और नर्सरी रोड समेत आसपास के घरों में दरारें पड़ रही हैं. हेदल इलाके में रहने वाली शांती देवी चौधरी का कहना है कि लोग डर के साये में जी रहे हैं. आशीष विहार के रहने वाले पीएल आर्य बताते हैं

' रेलवे दिन-रात ब्लास्टिंग करता है, जिससे कंपन होता है और उसी कारण घरों में दरारें दिखाई देने लगी हैं.'

यहां के लोगों ने सरकार से मैन्युली काम करने की मांग की है, ताकि उनके घरों को नुकसान न हो.

 रेलवे प्रोजेक्ट की वजह से पौड़ी स्थित घरों में दरारें आ गई हैं.(फोटो:आज तक)

बागेश्वर में पानी रिस रहा है

आज तक से जुड़ी नेहा चंद्रा कि रिपोर्ट के मुताबिक बागेश्वर के कपकोट गांव के ठीक ऊपर वाले हिस्से में जल विद्युत परियोजना चल रही है. यहां एक सुरंग के ऊपर पहाड़ी में गड्ढे बन गए हैं. जिस वजह से जगह-जगह से पानी रिस रहा है. इस रिसाव के चलते गांव के लोग डरे हुए हैं. इस गांव में करीब 60 परिवार रहते हैं. कपकोट में भी भूस्खलन की खबरें भी आती रहती हैं.

 कपकोट के पहाड़ी से बहता पानी(फोटो: आज तक)

उत्तरकाशी के दो गांव खतरे में

उत्तरकाशी (Uttarkashi) में दो गांव हैं मस्तदी (Masatdi) और भटवाड़ी (Bhatwadi). ये दोनों ही गांव खतरे के निशान पर हैं. जोशीमठ में हो रही घटनाओें के बाद यहां भी ग्रामीणों में दहशत का माहौल है. मस्तदी में साल 1991 में भूकंप आया था, जिसके चलते मस्तदी गांव लैंडस्लाइड की चपेट में आया और यहां की इमारतों में दरारे आ गईं. वहीं साल 1995-96 के आसपास यहां के घरों के अंदर से पानी निकलने लगा था और ये सिलसिला आज तक जारी है. जिला मुख्यालय से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ये गांव डूब रहा है. घरों में दरारें आ रही हैं. जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी देवेंद्र पटवाल का कहना है कि मस्तदी गांव का दोबारा जियोलॉजिकल सर्वे किया जाएगा. उसके बाद ही लोगों के पुनर्वास की व्यवस्था करवाई जाएगी.

 घरों के अंदर से निकलता हुआ पानी(फोटो: आज तक)

यहां दूसरा गांव भटवाड़ी की कहानी भी बड़ी अजीब सी है. इस गांव का भूगोल समझने पर पता चलता है कि इसकी स्थिति जोशीमठ जैसी है. इस गांव के नीचे से भागीरथी नदी बहती है और ऊपर होकर गुजरता है गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग. साल 2010 में भागीरथी नदी में कटान हुआ था, जिस वजह से यहां के 49 घर प्रभावित हुए थे. बढ़ती दरारों के साथ यहां मौजूद सुरक्षित इमारतें असुरक्षित होती जा रही हैं. हालांकि उत्तरकाशी के कुल 26 गांवों को अति संवेदनशील के रूप में चिन्हित किया गया है. मगर भूवैज्ञानिकों ने इनमें से सिर्फ 9 गांवों का ही विस्तृत सर्वे किया है.

रुद्रप्रयाग में घर तबाही की कगार पर

रुद्रप्रयाग (Rudraprayag) में है मरोदा गांव (Maroda Gaon). ये गांव ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन निर्माण का खामियाजा भुगत रहा है. सुरंग बनने की वजह से यहां के कुछ घर खत्म हो गए हैं और कई घर खात्मे की कगार पर हैं. मगर पीड़ित परिवारों को अभी तक मुआवजा नहीं मिल रहा है. मरोदा के लोग अपनी मौजूदा स्थिति के लिए सरकार को दोष देते हैं जिस गांव में कभी 35-40 परिवार रहा करते थे वहां अब सिर्फ 15 परिवार ही बचे हैं. रुद्रप्रयाग के जिलाअधिकारी मयूर दीक्षित कहते हैं.

'मरोदा गांव के विस्थापित परिवारों को ज्लद मुआवजा दिया जाएगा. अभी उनके लिए टीन शेड बनवाए गए हैं. और साथ ही और जरुरी सुविधाएं भी मुहैया कराई जा रही हैं. '

मगर इसके इतर गांव वाले जिलाधिकारी के दावों को नकार रहे हैं और कह रहे हैं कि यहां टीन शेड में रहने वाले लोगों को कोई भी सुविधा नहीं मिल रही है.

बहरहाल, एक बात जो इन सभी जगहों के संकट को देखने के बाद समझ में आती है वो ये कि संकट मानव निर्मित है. आपदा का दोषी इंसान खुद है. मतलब साफ है कि जब प्रकृति से छेड़छाड़ बंद होगी, तो पहाड़ और उसकी छत्रछाया में बसने वाले पहाड़ी फिर पहले की तरह मुस्कराएंगे. दिली इच्छा है- ऐसा जल्द हो.              Source: digital media

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