मेहरौली के जंगल वाले इलाके में डीडीए के बुलडोजर एक्शन को लेकर संदेह भरी निगाहें से देख रहे हैं. अखुंदजी मस्जिद विध्वंस का मामला तो अब हाईकोर्ट तक पहुंच गया है, जिस पर कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है. अब लोग यह बात जानने में लगे हैं कि जिस बाबा हाजी रोजबीह की मजार पर बुलडोजर एक्शन हुआ है, वह एएसआई की संरक्षित स्मारक वाली लिस्ट में है या नहीं?
दरअसल, बाबा हाजी रोजबीह का मजार संजय वन में था. बाबा रोजबीह को दिल्ली के पहले सूफी संतों में से एक माना जाता है. 30 जनवरी को डीडीए यानी दिल्ली विकास प्राधिकरण की टीम ने बाबा रोजबीह की मजार को बुलडोजर से जमींदोज कर दिया. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, डीडीए का कहना है कि संजय वन के अंदर कई अवैध संरचनाएं हैं, जिन्हें एक अभियान के तहत ध्वस्त किया जा रहा है. डीडीए ने 12वीं शताब्दी की इस बाबा रोजबीह मजार को भी इसी के तहत जमींदोज किया. रिपोर्ट में एक अधिकारी के हवाले से कहा गया कि रिज प्रबंधन बोर्ड के अनुसार, रिज क्षेत्र को हर प्रकार के अतिक्रमण से मुक्त करना है और इसलिए एक समिति का गठन किया गया है, जिसने संजय वन के अंदर कई अवैध संरचनाओं को हटाने का सुझाव दिया.
एएसआई की लिस्ट में है या नहीं मजार?
जब पुरानी मजार ध्वस्त कर दी गई तो अब सवाल उठता है कि क्या यह संरक्षित स्मारक थी या नहीं. कई लोग इस एक्शन को संदेह भरी निगाहों से देख रहे हैं. मगर इस बाबत खुद एएसआई अफसर ने कहा है कि यह मजार संरक्षित स्मारक की लिस्ट में नहीं है. हिंदुस्तान टाइम्स ने दिल्ली सर्कल के एएसआई के सुपरिटेंडिंग आर्कियोलॉजिस्ट प्रवीण सिंह के हवाले से बताया कि कब्र यानी मजार एएसआई के तहत संरक्षित स्मारकों की सूची का हिस्सा नहीं थी. यह मजार एएसआई सूचीबद्ध नहीं है. इतना ही नहीं, प्रवीण सिंह ने दावा किया कि मजार को गिराने से पहले डीडीए या किसी अन्य निकाय ने उनसे संपर्क नहीं किया था.
कहां है इस मजार का जिक्र?
बताया गया कि बाबा हाजी रोजबीह की यह कब्र किला लाल कोट के प्रवेश द्वार पर मौजूद थी. भले ही एएसआई की लिस्ट में यह मजार नहीं थी, मगर इतिहास में इसका जिक्र जरूर मिलता है. एएसआई यानी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सहायक अधीक्षक मौलवी जफर हसन द्वारा 1922 में प्रकाशित 'मोहम्मडन और हिंदू स्मारकों की लिस्ट, वॉल्युम III- महरौली जिला' में इसका जिक्र मिलता है. इसी में जिक्र है कि बाबा हाजी रोजबीह को दिल्ली के सबसे पुराने संतों में से एक माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि वह राय पिथौरा के समय दिल्ली आए थे और किले की खाई के पास एक गुफा में अपना निवास स्थान बनाया था.
एक टिप्पणी भेजें
0टिप्पणियाँ