गुरु गोविंद सिंह जी के चार पुत्रों की याद में कल मनाया गया 'वीर बाल दिवस' जानिए इसका इतिहास

Digital media News
By -
0
गुरु गोविंद सिंह जी के चार पुत्रों की याद में कल मनाया गया 'वीर बाल दिवस' जानिए इसका इतिहास

श्री गुरु गो‍बिंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरु हैं। इनका जन्म पौष सुदी 7वीं सन् 1666 को पटना में माता गुजरी जी तथा पिता श्री गुरु तेगबहादुर जी के घर हुआ। उस समय गुरु तेगबहादुर जी बंगाल में थे। उन्हीं के वचनोंनुसार गुरुजी का नाम गोविंद राय रखा गया, और सन् 1699 को बैसाखी वाले दिन गुरुजी पंज प्यारों से अमृत छक कर गोविंद राय से गुरु गोविंद सिंह जी बन गए। उनके बचपन के पांच साल पटना में ही गुजरे।

गुरू गोबिंद सिंह जी के चार छोटे साहिबजादों के बलिदान की याद में 26 दिसंबर का दिन 'वीर बाल दिवस' के रूप में मनाया जाता है. सही मानें तो वीर बालकों के बलिदान को सच्ची श्रद्धांजलि है.

बता दें कि गुरु गोबिंद सिंह जी के पुत्रों साहिबजादे ने अपने छोटी उम्र में ही न केवल गजब की वीरता दिखाई, बल्कि धर्म के लिए अपनी जान भी न्योछावर कर दी. वीर बाल दिवस वही दिन है, जब दो साहिबजादों, नौ वर्षीय बाबा जोरावर सिंह जी और छह बाबा फतेह सिंह जी को मुगलों द्वारा दीवार में जिंदा चुनवा दिया गया था. अपनी जान देकर भी उन्होंने अपने धर्म को सुरक्षित रखा.

जानकारी के लिए बता दें कि 9 जनवरी, 2022 को गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के अवसर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चारों साहिबजादों के साहस और देशभक्ति के साहसिक कार्यों से जन-जन को परिचित कराने तथा प्रेरित करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 26 दिसंबर को यह दिवस मनाए जाने की घोषणा की थी. उन्होंने उस दौरान कहा था कि माता गुजरी जी, गुरु गोबिंद सिंह जी और उनके चारों साहिबजादों की वीरता और आदर्शों ने लाखों लोगों को ताकत दी, जिन्होंने कभी भी अन्याय के आगे सिर नहीं झुकाया एवं समावेशी और सौहार्दपूर्ण विश्व की कल्पना की.

चारों साहिबजादों ने अन्याय के आगे सिर झुकाने के बजाए दी थी बलिदान

गुरु गोबिंद सिंह जी के चारों साहिबजादों ने अन्याय के आगे सिर झुकाने के बजाए अपने देश और धर्म की रक्षा के लिए हंसते-हंसते अपना बलिदान देकर अपनी वीरता और अपने आदर्शों से ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किए, जो आज भी हर किसी के लिए अनुकरणीय हैं. बता दें कि गुरु गोबिंद सिंह जी ने देशवासियों को अपने धर्म के प्रति जागरूक होने तथा कन्वर्जन न करने के लिए प्रेरित करते हुए मुगलों के खिलाफ लड़ाई में बहुत अहम भूमिका निभाई थी.

मुगलों द्वारा गुरु गोबिंद सिंह जी और उनके परिवार को दिए गए थे अनेक कष्ट 

बता दें कि गुरु गोबिंद सिंह जी और उनका पूरा परिवार सिख मत का प्रतीक था, जिन्होंने सिख पंथ को आगे बढ़ाने का दायित्व अपने हाथों में लिया था. उनका एक ही प्रण था कि चाहे कुछ भी हो जाए, वे लोगों को कन्वर्जन नहीं करने देंगे और मुगलों के खिलाफ एकता से लड़ेंगे. यही कारण था कि मुगलों द्वारा गुरु गोबिंद सिंह जी और उनके परिवार को अनेक कष्ट दिए गए.

गुरु गोबिंद सिंह जी के दो बड़े बेटों को उनके सामने ही मार डाला गया

गुरु गोबिंद सिंह जी के दो बड़े बेटों अजीत सिंह जी और जुझार सिंह जी को उनके सामने ही मार डाला गया और छोटे बेटों बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी को जिंदा दीवार में चुनवा दिया गया, लेकिन गुरुजी ने सिख पंथ छोड़कर मुगल बनना कभी स्वीकार नहीं किया. जानकारी के लिए बता दें कि सिखों के 10वें गुरु और उनके चारों साहिबजादों की महानता इसी से स्पष्ट पारिलक्षित होती रही है कि इन महान हस्तियों ने धर्म के महान सिद्धांतों से विचलित होने के बजाए बेहद कष्टदायक मौत को चुना. वहीं, गुरु गोबिंद सिंह जी तथा उनके चारों पुत्रों की वीरता ने देश के लोगों को प्रेरित किया, जिनके हृदय में एक ही भाव था.

1675 को कश्मीरी पंडितों की फरियाद सुनकर श्री गुरु तेगबहादुर जी ने दिल्ली के चांदनी चौक में बलिदान दिया। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी 11 नवंबर 1675 को गुरु गद्दी पर विराजमान हुए। धर्म एवं समाज की रक्षा हेतु ही गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 ई. में खालसा पंथ की स्थापना की। पांच प्यारे बनाकर उन्हें गुरु का दर्जा देकर स्वयं उनके शिष्य बन जाते हैं और कहते हैं-जहां पांच सिख इकट्ठे होंगे, वहीं मैं निवास करूंगा। उन्होंने सभी जातियों के भेद-भाव को समाप्त करके समानता स्थापित की और उनमें आत्म-सम्मान की भावना भी पैदा की।
 
गुरु गोबिंद सिंह जी की पत्नियां, माता जीतो जी, माता सुंदरी जी और माता साहिबकौर जी थीं। बाबा अजीत सिंह, बाबा जुझार सिंह आपके बड़े साहिबजादे थे जिन्होंने चमकौर के युद्ध में शहादत प्राप्त की थीं। और छोटे साहिबजादों में बाबा जोरावर सिंह और फतेह सिंह को सरहंद के नवाब ने जिंदा दीवारों में चुनवा दिया था। युद्ध की दृष्‍टि से आपने केसगढ़, फतेहगढ़, होलगढ़, अनंदगढ़ और लोहगढ़ के किले बनवाएं। पौंटा साहिब आपकी साहित्यिक गतिविधियों का स्थान था।

 
दमदमा साहिब में आपने अपनी याद शक्ति और ब्रह्मबल से श्री गुरुग्रंथ साहिब का उच्चारण किया और लिखारी (लेखक) भाई मनी सिंह जी ने गुरुबाणी को लिखा। गुरुजी रोज गुरुबाणी का उच्चारण करते थे और श्रद्धालुओं को गुरुबाणी के अर्थ बताते जाते और भाई मनी सिंह जी लिखते जाते। इस प्रकार लगभग पांच महीनों में लिखाई के साथ-साथ गुरुबाणी की जुबानी व्याख्या भी संपूर्ण हो गई।

 
इसके साथ ही आप धर्म, संस्कृति और देश की आन-बान और शान के लिए पूरा परिवार कुर्बान करके नांदेड में अबचल नगर (श्री हुजूर साहिब) में गुरुग्रंथ साहिब को गुरु का दर्जा देते हुए और इसका श्रेय भी प्रभु को देते हुए कहते हैं- 'आज्ञा भई अकाल की तभी चलाइयो पंथ, सब सिक्खन को हुक्म है गुरु मान्यो ग्रंथ।' गुरु गोबिंद सिंह जी ने 42 वर्ष तक जुल्म के खिलाफ डटकर मुकाबला करते हुए सन् 1708 को नांदेड में ही सचखंड गमन कर दिया। 


एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)